Taliban से पहले कैसी थी Afghanistan की लड़कियों की जिंदगी? | Tarikh E793

Published: Sep 03, 2024 Duration: 00:12:04 Category: Education

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पावर्ड बाय [संगीत] आईटेल 1920 का दशक अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक सार्वजनिक सभा चल रही थी जिसके स्टेज पर खड़े थे किंग अमानुल्लाह खान अमानुल्लाह ने देश की प्रगति और लोगों की भलाई जैसी तमाम रवायत बातें की लेकिन इसके बाद उन्होंने कुछ ऐसा कहा जिसकी मिसाल ना अफगानिस्तान के इतिहास में थी ना भविष्य में होने वाली थी किंग अमानुल्लाह ने तब कहा था इस्लाम में महिलाओं के बुर्का पहनने की अपना जिस्म ढक कर रखने की पाबंदी नहीं है अमानुल्लाह का यह कहना था कि भीड़ अवाक रह गई किसी को समझ नहीं आया कि रिएक्ट कैसे किया जाए अब बोलने वाला भी राजा है आप बोलोगे कैसे कुछ किंग अमानुल्लाह की पत्नी क्वीन सुराया उनके बगल में खड़ी थी वह आगे बढ़ी और अपने चेहरे से उन्होंने नकाब हटा लिया पुरुष अभी भी अवाग थे लेकिन भीड़ में मौजूद तमाम महिलाओं ने तालियां बजाना शुरू कर दिया इसके बाद एक-एक कर उन सभी ने अपने चेहरे से नकाब हटा लिया लगभग 100 साल पहले हुई इस घटना की तुलना आप वर्तमान से करके देखिए अब अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने हाल में महिलाओं के लिए नए कानून लागू किए हैं स्कूल जाने और नौकरी करने पर लगी पाबंदी के बाद अब महिलाओं के बोलने पर भी बंदिश लगा दी गई है नए कानूनों के अनुसार पब्लिक में बोलना बैन है यहां तक कि घर पर भी जोर से नहीं बोल सकती महिलाएं महिलाएं उन मर्दों को देख भी नहीं सकती जिनके उनसे ब्लड रिलेशन या वैवाहिक संबंध नहीं है महिलाएं पब्लिक में अकेले ट्रेवल नहीं कर सकती तालिबान यह सब पहली बार नहीं कर रहा है 1990 के दशक में जब तालिबान पहली बार सत्ता में आया था तब भी महिलाओं के साथ ऐसा ही हुआ था अचरज की बात यह है कि दुनिया जहां आगे बढ़ रही है अफगानिस्तान के महिलाओं के लिए वक्त पीछे जा रहा है पीछे जा रहा रहा है यह भी कहना ठीक नहीं है क्योंकि असल में पीछे अगर वह चला जाए तो कम से कम 20वीं सदी में अफगानिस्तान में महिलाओं की हालात इससे कहीं बेहतर थी जो आज है तालिबान से पहले कैसी थी अफगान महिलाओं की जिंदगी आज के एपिसोड में चर्चा इसी बात पर नमस्ते मैं हूं निखिल और आप देख रहे हैं ऐतिहासिक किस्सों कहानियों से जुड़ा हमारा रोजाना का कार्यक्रम [संगीत] तारीख हफीजुल्लाह इ मादी अपनी किताब रिप्रेशन रेजिस्टेंस एंड वमन इन अफगानिस्तान में बताते हैं 1930 के दशक में काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक अजीब नजारा देखने को मिलता था समरान वर्ग की महिलाएं जब विदेश से लौटती तो उनका एक सहायक एयरपोर्ट पर रिसीव करने के लिए मौजूद रहता उसके एक हाथ में हमेशा एक चादर हुआ करती और प्लेन के लैंड होते ही दौड़कर प्लेन के अंदर घुस जाता वो यह सब इसलिए जरूरी माना जाता था क्योंकि महिलाएं जब विदेश के दौरे पर होती वहां वह पर्दा किए बिना रहती और उन्हें बेपर्दा रहने की आदत पड़ जाती इसलिए जब वह काबुल लौटा करती एक सहायक उनके पास पर्दा लेकर जाता ताकि वह बिना पर्दा आम पब्लिक को ना दिखें अफगानिस्तान हमेशा कबीलों का देश रहा किताब में इ मादी बताते हैं कि कबीलों की अपनी-अपनी प्रथाएं होती हैं और महिलाओं के हकों को लेकर अक्सर वह बहुत उत्साहित नहीं रहते इसके बावजूद 1920 के दशक में अफगानिस्तान में महिलाओं के हकों में इजाफा हुआ और यह काम किया खुद एक महिला ने सुराया तारसी यह नाम था अफगानिस्तान की एक रानी का वो 1919 से 1929 तक अफगानिस्तान पर शासन करने वाले किंग अमानुल्लाह खान की पत्नी थी 1927 में टाइम मैगजीन ने अपने कवर पेज पर उनकी तस्वीर छापी और दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं की लिस्ट में उन्हें शामिल भी किया क्वीन सुराया ने 1921 में अफगानिस्तान में लड़कियों के लिए पहला प्राइमरी स्कूल भी खोला वह महिला अधिकारों और शिक्षा को लेकर काफी मुखर थी अमानुल्लाह अक्सर कहा भी करते कि राजा मैं हूं लेकिन शिक्षा मंत्री तो कोई नहीं है अमानुल्लाह खुद भी काफी प्रोग्रेसिव थे उन्होंने बाल विवाह जबरदस्ती शादी लड़कियों की खरीद फरोग जैसी पुरानी परंपराओं पर पाबंदी लगा दी कुरीतियां जो परंपरा के नाम पर चल रही थी लड़कियों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया उन्होंने और बकायदा उनके दौर में 15 अफगान लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए तुर्की भेजा गया ये तमाम अधिकार हालांकि सिर्फ अमीर वर्ग तक सीमित रहे अर्बन इलाकों में ज्यादातर कबीलों के मुखिया अमानुल्लाह की प्रोग्रेसिव नीतियों से खुश नहीं थे साल 1927 में क्वीन सुराया जब यूरोप के दौरे पर थी वहां उनकी कुछ तस्वीरें छपी इन तस्वीरों में वह बिना बुरका पहने पुरुषों के साथ खड़ी थी और इन तस्वीरों से कबीलों के मुखिया इतने नाराज हुए कि किंग अमानुल्लाह के खिलाफ विद्रोह छिड़ा इस मामले में एक दावा यह भी किया जाता है कि इन तस्वीरों को फैलाने में ब्रिटिश सरकार का हाथ था दुनिया भर को ज्ञान जहां से मिलता है उन लोगों का दावा किया जाता है जो अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन कराना चाहते थे एक जमाने में यह भी सच्चाई है ब्रिटिश लोगों का इंटरेस्ट था वहां सच्चाई जो भी र हो तस्वीरों के फैलने के 2 साल बाद ही अमानुल्लाह को परिवार समेत देश छोड़ना पड़ा किंग अमानुल्लाह और क्वीन सुराया के बारे में एक दिलचस्प ट्रिविया यह भी है कि अमानुल्लाह ने 1929 में हिंदुस्तान में शरण ली यहां उन्हें एक बेटी पैदा हुई जिसका नाम उन्होंने इंडिया रखा था किंग अमानु उल्ला के दौर में जो सुधार हुए उनके तक्ता पलट के बाद उन्हें वापस लिया गया महिलाओं के लिए प्रकाशित होने वाली पत्रिकाएं बैन हुई और उनके स्कूल भी बंद किए गए बुरका पहनना एक बार फिर मैंडेटरी हुआ महिलाओं की स्थिति 1933 तक रही 1933 में मोहम्मद जाहिर शाह किंग की कुर्सी पर बैठे जाहिर शाह कबीलों की ताकत से परिचित थे इसलिए उन्होंने महिला अधिकारों की गाड़ी आगे तो बढ़ाई लेकिन हौले हौले मसलन लड़कियों के स्कूल एक बार फिर खोले गए लेकिन इन्हें नर्सिंग स्कूल का नाम दिया गया ताकि विरोध ना हो सरकार ने विमेंस वेलफेयर एसोसिएशन नाम की एक संस्था का गठन किया है जिसकी हेड क्वीन हुमैरा बेगम थी इतना ही नहीं 1900 50 के दशक में लड़कियों को काबुल यूनिवर्सिटी में प्रवेश भी दिया जाने लगा इन तमाम कवायद को और भी स्पीड मिली 1953 में जब मोहम्मद दाऊद खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया दाऊद खान किंग जहीर की तुलना में ज्यादा प्रोग्रेसिव थे उन्होंने महिलाओं की बेहतरी के लिए तमाम कार्यक्रम किए उनके दौर में लड़कियां अफगान एयरलाइन टेलीकम्युनिकेशन इन सारे डिपार्टमेंट्स में सरकारी संस्थाओं में नौकरी करती थी उन्होंने पर्दा प्रथा की मुखालिफत भी की एक बार जब मोहम्मद दाऊद क के दौरे पर थे वहां उन्होंने सरकारी अफसरों से दो टूक कहा कि अपनी पत्नी से बुरका छोड़ने के लिए कहिए आप लोग प्रधानमंत्री के इस कदम का काफी विद्रोह भी हुआ वैसे कई जगह बिना बुरका पहनी महिलाओं पर हमले हुए हालांकि मोहम्मद दाऊद पीछे हटे नहीं 1959 में उन्होंने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया और उन्होंने सरकारी विभागों में काम करने वाली लड़कियों महिलाओं से कहा कि वह आप बिना बुरका पहने काम पर आए इस कदम का असर हुआ कि काबुल की सड़कों पर धीरे-धीरे बिना बुर्के की महिलाएं दिखने लगी लड़कियों को बढ़ावा देने के लिए मोहम्मद दाऊद ने अपने परिवार को नजीर भी बनाया 1959 की बात है काबुल में उन दिनों खास मौके पर मिलिट्री परेड का आयोजन होता था ऐसे ही मौके पर मोहम्मद दाऊद अपनी पत्नी को लेकर आए स्टेज पर सबके सामने पहली बार प्रधानमंत्री की पत्नी खड़ी हुई व भी बिना बुर्के के क्वीन हुमैरा बेगम और प्रिंसेस बिल्कीस ने भी ऐसा ही किया इस घटना से अफगानिस्तान में इतना हंगामा हुआ कि मौलवियों ने विरोध में प्रधानमंत्री को खत भेजने शुरू कर दिए जिनमें लिखा था कि रानी और शहजादी का बेपर्दा रहना इस्लाम के खिलाफ है अपनी किताब गेम्स विदाउट रूल्स द ऑफें इंटरप्टेड हिस्ट्री ऑफ अफगानिस्तान में तमीम अंसारी लिखते हैं कि मौलवियों के खत देखकर प्रधानमंत्री ने उन्हें काबू लाने का बुलावा भेजा और चैलेंज दिया कि वह धार्मिक किताबों में ढूंढ कर दिखाएं कि पर्दे के बिना रहना मना लिखा कहां है अंसारी आगे लिखते हैं एक भी मौलवी साबित करने में नाकाम रहा अपनी बात की टेक्स्ट में ऐसा लिखा है अब आप इन तस्वीरों को ही देखिए यह 1960 और 1970 के दशक का काबुल है जब लड़कियों को पढ़ने की नौकरी करने की आजादी थी साल 1964 में अफगानिस्तान का नया संविधान तैयार हुआ जिसमें महिलाओं के बराबरी के अधिकार सुनिश्चित किए गए उन्हें वोट देने का और चुनाव लड़ने का हक मिला इस दौर में अफगानिस्तान में कई लड़कियां डॉक्टर इंजीनियर और साइंटिस्ट भी बनी एक महिला को पहली बार कैबिनेट मिनिस्टर का पद मिला और एक महिला पहली बार जज भी नियुक्त हुई महिलाओं ने मीडिया में में भी कदम रखा रुकसाना नाम की एक सिंगर हुआ करती थी जो 1960 के दशक में खूब फेमस हुई ऐसा नहीं कि यह सब एक ही सत्ता के अंडर हुआ 1973 में मोहम्मद जाहिर शाह के तख्ता पलट के बाद अफगानिस्तान एक रिपब्लिक में तब्दील हुआ और इसके चंद साल बाद ही देश की सत्ता कम्युनिस्टों के हाथ में गई अब कम्युनिस्ट सरकार ने 1992 तक शासन किया इस दौरान महिलाओं के अधिकारों में बढ़ोतरी होती ही रही कमश एक आंकड़े के अनुसार साल 1991 में अफगानिस्तान में लगभग ा लाख लड़कियां स्कूलों में पढ़ती थी 22000 महिलाएं टीचर थी और महिला प्रोफेसर्स की गिनती 190 के आसपास थी इसके अलावा सरकार में काम करने वाली महिलाओं की संख्या भी हजारों में थी अब जैसे हमने पहले आपको बताया ऐसा बिल्कुल नहीं था कि सिर्फ कम्युनिस्ट रूल में ही अफगानिस्तान में महिलाओं को हक मिले 1950 और 60 के दशकों में भी हकों में लगातार बढ़ोतरी हुई कई मिसाले हमने पहले भी दी 1980 के दशक में लेकिन जब मुजाहिदीन आते हैं स्केप में लैंडस्केप में उनका उभार होता है उन्होंने इस चलन को कम्युनिस्ट शासन से जोड़कर देख लिया मुजाहिदीन ने अफगान सरकार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी जिसमें उन्हें अमेरिका का साथ भी मिला अमेरिका को उस जमाने में सिर्फ कम्युनिस्टों को सत्ता से हटाने और सोवियत संघ को अफगानिस्तान से बेदखल करने में दिलचस्पी थी उन्होंने मुजाहिदीन के महिला विरोधी रवैए से कोई आपत्ति की नहीं अमेरिका की मदद से मुजाहिदीन सफल हुए और साल 1992 में उन्होंने सत्ता हथिया ली इसके अगले ही साल एक डिग्री जारी हुई कि महिलाओं का घर से निकलना मना है अब यह डिग्री कुछ साल तक कागज में ही रही मुजाहिदीन के अलग-अलग धड़े आपस में लड़ते रहे काफी समय तक और इस दौरान काबुल में लड़कियों का नौकरी पर जाना जारी रहा इसके बाद आया साल 1996 जब तालिबान आया अफगानिस्तान पर तालिबान का पूरा कंट्रोल हुआ और इसी के साथ लड़कियों की जिंदगी नर्क बनी तालिबान के सत्ता में आने से पहले ही लड़कियों को किडनैप किया जाने लगा सत्ता में आने के बाद उनका घर से ही निकलना मुहाल कर दिया गया काबुल में तालिबान लड़ाकों ने जब पहली बार कदम रखा तो उन्होंने औरतों को सिर्फ इस बात पर मारना शुरू कर दिया कि उन्होंने अपनी कलाइयां नहीं ढकी थी पुरुषों को इस बात पर मारा जाता था कि उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई नहीं थी 1996 से 2001 तक जब तक यूएस नहीं आ गया काबुल पर तालिबान का शासन रहा इस दौरान लड़कियों के स्कूल जाने और काम करने पर पूरी तरह पाबंदी रही लड़कियों की हालत तब इतनी बुरी थी कि अगर उनके चलने पर जूतों की आवाज भी हो जाती तो उन्हें सजा मिलती और भी कई कानून थे कि कोई महिला बिना पर्दा घर से नहीं निकल सकती मर्द डॉक्टर महिला का चेकअप नहीं कर सकता लड़कियां खेल नहीं सकती संगीत तो किसी को ही नहीं पसंद अपनी पसंद से शादी नहीं कर सकती तालिबानी निजाम के ये तमाम कानून वर्तमान में भी लागू है तालिबान के पहले और दूसरे दौर के बीच 20 साल का फासला रहा बीच में अमेरिका के शय में एक कमजोर सत्ता बेहाल हुई थी जिस दौरान महिलाओं के हकों में बहाली फिर से हुई स्कूल खुले महिलाएं नौकरी करने लगी लेकिन तालिबान की वापसी के बाद अफगानिस्तान में महिलाएं एक बार फिर उसी अंधेरे युग में धकेल दी गई हैं एक बात हम बार-बार सुनते हैं कि दुनिया मॉडर्निटी की तरफ बढ़ रही है इंसान की स्थिति बेहतर होती जा रही है आगे और बेहतर ही होगी 100 साल पहले काबुल के किसी लड़की से यह कहा गया होता तो उसने उस भविष्य की कल्पना भी नहीं की होती जो अफगानिस्तान की लड़कियों का वर्तमान है इसी नोट पर आज का एपिसोड हम यहीं पे खत्म करते हैं कमल ने इसे लिखा और विजय ने रिकॉर्ड किया आप देखते रहिए दी ललन टॉप्स [संगीत]

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