की फ्लाइट का नाम था 24 दिसंबर साल 1999 की शाम को इस फ्लाइट ने काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी लेकिन इसे पांच आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया उसके बाद सात दिनों तक लोगों को बंधक बना के रखा गया भारतीय सरकार उन लोगों को घर कैसे ला पाई उसी घटना पर यह शो आधारित [संगीत] है शुरुआत में आई 814 एक उम्दा थ्रिलर है प्लेन हाईजैक होने के बाद की टेंशन वो डर का माहौल आपको रखता है जबकि ग सर्च से आप पूरी कहानी पता कर सकते हैं ये शो सिर्फ उस कहानी को जस का तस दिखाने के बारे में नहीं था अगर ऐसा होता तो मेकर्स से चीप थ्रिलर बनाकर व्यूज बटोर लेते जो कि आसान भी था लेकिन उन्होंने अपने किरदारों और उनकी दुनिया में इन्वेस्ट किया है उन्हें इतिहास के पात्रों की बजाय हम आप जैसे इंसानों की तरह देखा यही वजह है कि यहां कोई लार्जर देन लाइफ हीरो नहीं है कोई इंसान सही करना चाहता है लेकिन डर के मारे उसके पांव जम जाते हैं वो खुद से बड़ा काम नहीं कर पाता पर ऐसे में आप उसे दुत काते नहीं ना ही उसे जज करते हैं सात दिन तक यात्रियों को बंधक बनाकर रखा गया शुरू में वो रोते चीखते बिलखते हैं लेकिन उनकी जिंदगी सातों दिन सिर्फ इसी काम तक सीमित नहीं रहती जिंदगी आगे बढ़ती है हम देखते हैं कि कैसे एक पिता अपने डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे बेटे की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखता लेकिन पांचवे या छठे दिन उसके सिर पर हाथ सलाता है केविन क्रू में एक महिला बस अपने पिता की खैरियत जानना चाहती है कोई हालात की फ्रस्ट्रेशन इस बात से निकाल है कि उसे बिजनेस क्लास में क्यों नहीं बैठने दिया जाएगा किसी भी कहानी की पहली बुनियाद पड़ती है लेखन के लेवल पर उस केस में यहां बुनियाद को अच्छे से भरा गया है कुल मिलाकर शो की राइटिंग बहुत सॉलिड है इस कहानी में बहुत सारे ट्रैक एक साथ चलते हैं जैसे काठमांडू में इंडियन एंबेसी के अधिकारी अपनी जांच में लगे हुए हैं फ्लाइट में कैप्टन अपने विवेक का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं एक अखबार की रिपोर्टर और संपादक इस द्वंद में है कि जनता और देश के प्रति आपकी क्या जिम्मेदारी है उधर ॉ आईबी और विदेश मंत्रालय यह समझने की कोशिश कर रहा है कि चूक की जिम्मेदारी कौन लेगा मेकर्स ने इन सभी ट्रैक्स के बीच सही बैलेंस बना कर रखा है कहीं भी यह नहीं लगता कि किसी एक की कहानी दूसरे पर ओवरलैप कर रही है हर ट्रैक पर इतना इन्वेस्ट किया कि उन पर अलग से फिल्म या सीरीज बन जाए अच्छी राइटिंग का एक और उदाहरण बताते हैं शो के डायलॉग बहुत क्रिस्प है गैर जरूरी ढंग से शब्द जाया नहीं किए गए जैसे अंत में सब कुछ सही हो जाता है उसके बाद आतंकवादियों से नेगोशिएट करने वाले काई खड़े हैं उनमें से एक कहते हैं सो वी वन बगल से सवाल आता है डिड वी फिर कोई कहता है वी फॉट फिर सवाल डिड वी मात्र नौ शब्दों में आप मेकर्स का पूरा टेक समझ जाते हैं राइटिंग टीम ने सबटेक्स्ट का भी कायदे से इस्तेमाल किया है सबटेक्स्ट दरअसल वो तकनीक है जिसके जरिए आप किसी एक चीज के बारे में बात कर रहे हैं लेकिन आपका मतलब बिल्कुल अलग होगा जैसे आई 814 में आतंकवादी प्लेन को हाईजैक करने के बाद उसे अमृतसर लेकर जाते हैं इंधन के लिए उधर रॉ के चीफ को याद आता है कि पंजाब पुलिस के जो डीजीपी है प्रभजोत वो उनके दोस्त है तब एक डायलॉग आता है कि प्रभजोत चेस बहुत अच्छा खेलता है आखरी मोमेंट पर बाजी बदल देता था यहां प्रभजोत के चेस स्किल्स की बात नहीं हो रही है इस बात में सबटेक्स्ट यह है कि प्रभजोत बाजी पलट सकते हैं आतंकवादियों को पकड़ सकते हैं इस सिचुएशन में भी इस ें सिचुएशन में भी ये डायलॉग पीक टेंशन वाले माहौल में आता है जब दर्शक और यात्री खुद को असाय पाते हैं जबकि दर्शक कहानी जानते हुए भी खुद को एंगेज पा रहा है इस सिचुएशन में शो की कास्ट इसे देखने की एक और बड़ी वजह है नसीरुद्दीन शाह पंकज कपूर कमलजीत सिंह कुमुद मिश्रा अरविंद स्वामी आदित्य श्रीवास्तव और देवेंदु भट्टाचार्य जैसे कलाकार एक स्पेस में हाईजैकर्स से डील करने की कोशिश कर रहे हैं इन एक्टस को एक साथ देखना किसी जुगलबंदी की याद दिलाता है जहां हर कोई सिंक में एक धुन बजा रहा है कोई भी यह नहीं सोच रहा कि मुझ पर कैमरा है तो खुद को चमका लेना चाहिए वन फॉर ऑल ऑल फॉर वन वाला एटीट्यूड है यही अनुभवी और सिक्योर एक्टर्स की निशानी भी है उनके अलावा विजय वर्मा ने फ्लाइट कैप्टन देवी शरण का रोल किया है विजय अपने किरदार का पद और उसके साथ आने वाली जिम्मेदारी को समझते हैं खुद की लय को इधर-उधर नहीं होने देते दूर से देखने पर लगे कि व साधारण बातें ही तो कर रहे थे लेकिन यही एक अच्छे एक्टर की निशानी है कि वो साधारण को सरल बना दे उसे सुंदर बना दे विजय ने बस यही किया है बाकी पत्रलेखा फ्लाइट के केबिन क्रू में शामिल थी इतनी भारी वकम कास्ट में भी वह अपनी प्रेजेंस महसूस करवा पाती हैं केबिन क्रू में उनके साथी बनी आदित्य गुप्ता चोपड़ा ने भी अच्छा काम किया यही बात आतंकी बने राजीव ठाकुर हरविंदर सिंह और दिल जौन पर भी लागू होती है मुल्क आर्टिकल 15 और अनेक जैसी फिल्मों पर अनुभव सिन्हा के साथ काम कर चुके सिनेमेट ग्राफर इवन मुलिन इस प्रोजेक्ट के लिए भी लौटे उनके कुछ फ्रेम्स ऐसे थे कि आपका ध्यान खींच कर रख लेते हैं लेजी काम नहीं हुआ है जैसे एक गाड़ी के बाहर खड़े होकर कुछ अधिकारी बात कर रहे हैं गाड़ी का दरवाजा खुलता है एक अधिकारी उतर करर आगे किसी से बात करने जा रहा है शॉर्टकट नहीं होता दरवाजा खुलने से फ्रेम में जो जगह बनी है जो जगह खाली हुई है उसके बीच से आप उस दूर गए अधिकारी को किसी से बात करते हुए देख पाते हैं मेकर्स ने कंपोजिशन को बहुत अच्छे से समझा है किसी भी किरदार को बस ऐसे ही नहीं खड़ा किया कि चलो फ्रेम को भरना है कहीं भी खड़े हो जाओ हर फ्रेम के पास कहने के लिए कुछ ना कुछ है आप लंबे समय से जो सोशल मीडिया ब्रेक लेना चाहते थे ना वो लेने का सही मौका है आई 814 देखिए क्योंकि यह सीरीज देखी जानी चाहिए मैं हूं यमन और कैमरा के पीछे हमारे साथी जतिन शुक्रिया [संगीत]