Apollo 13- Story That You Can't Imagin | Lost In Space | Space Mission | #Nasa#isro#space

Published: Sep 05, 2024 Duration: 00:19:15 Category: Education

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11 अप्रैल 1970 नासा तीसरी बार इंसानों को चांद की धरती पर भेजने के लिए उड़ान भरता है इससे पहले नासा दो बार इंसानों को चांद की धरती पर सफलता पूर्वक उतार चुका है नासा की सैकड़ों लोगों की टीम इस मिशन को सफल बनाने के लिए इसके हर एक पहलू पर नजर रखे हुए हैं जब नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर पहली बार कदम रखा था उस बात को अभी एक साल भी नहीं गुजरा है इस फ्लाइट में बैठे हैं तीन एस्ट्रोनॉट्स जिनका सपना है चांद की धरती पर अपना कदम रखने का सब कुछ ठीक चलता है इस यान में इनको सफर करते हुए 3 दिन बीत जाते हैं और अब यह चांद के बहुत करीब पहुंच चुके हैं और कुछ ही घंटों के बाद यह चांद पर लैंड करने वाले हैं इनका अंतरिक्ष यान गोली की रफ्तार से भी ज्यादा तेज चल रहा है और अचानक इन्हें एक धमाके की आवाज सुनाई देती है जैसे ही यह धमाका होता है तो स्पेसक्राफ्ट के अंदर सारे अलार्म्स भजने लगते हैं इस धमाके ने स्पेसक्राफ्ट को पूरी तरह से हिलाक रख दिया जब ये अपने इंस्ट्रूमेंट पैनल को देखते हैं तो पता चलता है कि एक ऑक्सीजन टैंक ब्लास्ट हो चुका है और उसकी सारी ऑक्सीजन खत्म हो चुकी है और जो दूसरा ऑक्सीजन टैंक था उसकी ऑक्सीजन बड़ी ही तेजी से अंतरिक्ष में लीक होती जा रही है यह एस्ट्रोनॉट्स अब अंतरिक्ष में खो चुके हैं यह धरती से इतनी दूर पहुंच जाते हैं कि यह एक नया रिकॉर्ड बन जाता है अब चांद पर जाना तो दूर की बात अब सवाल यह है कि क्या यह एस्ट्रोनॉट्स धरती पर जिंदा वापस आ भी पाएंगे या नहीं सच में अपोलो 13 की यह कहानी आपके दिल को दहला देगी 20 जुलाई 1969 को अपोलो 11 के एस्ट्रोनॉट्स नील आर्मस्ट्रांग और बज ल्डन ने जब पहली बार चांद की धरती पर कदम रखा तो इंसानों के लिए वह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी उस समय लोग नासा के इस मून मिशन को लेकर बड़े ही उबले थे नासा के वैज्ञानिकों ने इंसानों को चांद की धरती पर उतारा भी और उनको सही सलामत वापस धरती पर भी लाए और इसके ठीक चार महीनों के बाद नासा ने अो 12 को लॉन्च किया और एक बार फिर से दो एस्ट्रोनॉट्स को चांद की धरती पर उतारा वियतनाम वॉर में लगाया जाए लेकिन इधर नासा चाहता था कि उसका अपोलो प्रोग्राम जारी रहे और नासा ने अपोलो 20 तक की प्लानिंग कर रखी थी और नासा अपोलो 13 की तैयारियों में जुटा हुआ था अपोलो 13 का मेन उद्देश्य था कि चांद की धरती पर जाकर वहां पर वैज्ञानिक परीक्षण करना और चांद कब और कैसे बना था इसका पता लगाना जिससे पृथ्वी के ओरिजिन का भी पता लगाया जा सके हर मिशन की तरह इस मिशन में भी तीन एस्ट्रोनॉट्स जाने वाले थे अपोलो 13 के कमांडर थे जिम लॉवेल और फाइनली 11 अप्रैल 1970 को अपोलो 13 को लॉन्च किया जाता है इस लॉन्च को देखने के लिए 2 लाख लोग आए थे लेकिन अगर अपोलो 11 की बात करें तो उसके लॉन्च को देखने के लिए करीब 70 लाख लोगों की भीड़ इकट्ठी हुई थी अब आप इससे अंदाजा लगा सकते हो कि अपोलो प्रोग्राम का क्रेज जनता में किस कदर कम हो गया था बार-बार चांद पर जाने से लोगों को लग रहा था कि यह भी चांद पर जाने की एक रूटीन फ्लाइट है इसी वजह से किसी भी बड़े चैनल ने इस लॉन्च को टेलीकास्ट ही नहीं किया था अो 13 का यह लॉन्च सफल रहा और अब इन्हें 3 दिन लगेंगे चांद पर पहुंचने में सब कुछ ठीक चल रहा था लॉन्च के करीब 55 घंटों के बाद अपोलो 13 आधे से ज्यादा रास्ते को कवर कर चुका था इस दौरान अपोलो 13 का क्रू धरती पर लाइव टेलीकास्ट करता है जिसमें वह दिखाते हैं कि कैसे वह जीरो ग्रेविटी में रह रहे हैं अपोलो स्पेसक्राफ्ट अंदर से कैसा है लेकिन इस ब्रॉडकास्ट को भी किसी भी चैनल ने नहीं दिखाया मिशन के दौरान अपोलो 13 का क्रू धरती पर मौजूद मिशन कंट्रोल के संपर्क में रहता है नासा का मिशन कंट्रोल अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में था ह्यूस्टन में बैठे नासा के वैज्ञानिक हर पल अपोलो 13 पर नजर बनाए हुए थे छोटी से छोटी गतिविधि को देख रहे थे और अपोलो 13 के क्रू को हर पल गाइड कर रहे थे आगे अपोलो 13 में क्या हुआ उससे पहले आपको अपोलो 13 के इस बेसिक स्ट्रक्चर को समझना बहुत जरूरी है यह है अपोलो स्पेसक्राफ्ट जो कि तीन भागों से मिलकर बना है इनमें पहला भाग है लूनर मॉड्यूल और इस लूनर मॉड्यूल का उपयोग तब होगा जब अपोलो स्पेसक्राफ्ट चांद के ऑर्बिट में पहुंच जाएगा चांद के ऑर्बिट में पहुंचने के बाद यह स्पेसक्राफ्ट से अलग होगा और इसमें दो एस्ट्रोनॉट्स बैठकर चांद की धरती पर उतरेंगे और जब चांद पर एस्ट्रोनॉट्स का काम खत्म हो जाएगा उसके बाद फिर से एस्ट्रोनॉट्स इसी लूर मॉड्यूल में बैठकर वापस अपोलो स्पेसक्राफ्ट में पहुंच जाएंगे यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इस लूर मॉड्यूल का खुद का लाइफ सपोर्ट सिस्टम है इसके द्वारा ये एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर उतरने से लेकर वापस अपोलो यान में आने तक पावर और ऑक्सीजन इत्यादि की सप्लाई देता रहेगा इस लूर मॉड्यूल का बस इतना ही काम है अगर देखा जाए तो लूर मॉड्यूल को छोड़कर यह है मेन अपोलो स्पेसक्राफ्ट यह दो भागों से मिलकर बना है जिसमें यह है कमांड मॉड्यूल जो तीनों एस्ट्रोनॉट्स चांद पर जा रहे हैं वह इसी कमांड मॉड्यूल में बैठकर जा रहे हैं इसी कमांड मॉड्यूल के द्वारा ही एस्ट्रोनॉट्स पूरे स्पेसक्राफ्ट को कंट्रोल करते हैं इसी के अंदर वो सारे कंप्यूटर्स और नेविगेशन सिस्टम लगे हैं जिनके द्वारा अपोलो स्पेसक्राफ्ट धरती से मिशन कंट्रोल के संपर्क में है आप इस कमांड मॉड्यूल को अपोलो स्पेसक्राफ्ट का दिमाग बोल सकते हो लेकिन अपोलो स्पेसक्राफ्ट का जो तीसरा जरूरी भाग है वह है सर्विस मॉड्यूल आप सर्विस मॉड्यूल को अपोलो स्पेसक्राफ्ट का दिल बोल सकते हो क्योंकि सर्विस मॉड्यूल कमांड मॉड्यूल के लिए लाइफ सपोर्ट का काम करता है कमांड मॉड्यूल में बैठे एस्ट्रोनॉट्स को जिंदा रखने के लिए जो जरूरी चीजें हैं जैसे इलेक्ट्रिसिटी ऑक्सीजन पानी इत्यादि यह सभी सर्विस मॉड्यूल के द्वारा ही कमांड मॉड्यूल में पहुंचते हैं इस सर्विस मॉड्यूल में एक इंजन भी लगा है जिसके द्वारा यह एस्ट्रोनॉट्स चांद पर पहुंचेंगे और अपने पाथ को सेट करके वापस धरती पर भी आएंगे आप यह समझ लो कि बिना इस सर्विस मॉड्यूल के चांद पर जाना तो बहुत दूर की बात वापस धरती पर भी नहीं आया जा सकता जैसा कि अभी मैंने आपसे बोला था कि आप सर्विस मॉड्यूल को अपोलो स्पेसक्राफ्ट का दिल बोल सकते हो और अगर इस दिल में ही हार्ट अटैक आ जाए तो क्या होगा कुछ ऐसा ही हुआ था अपोलो 13 के साथ यह जो सर्विस मॉड्यूल है उसने ही काम करना बंद कर दिया था दरअसल ब्रॉडकास्ट खत्म करने के करीब 7 मिनट बाद जब अपोलो का क्रू सोने के लिए जा रहा था तब उसे ह्यूस्टन में मौजूद मिशन कंट्रोल से एक जरूरी काम करने के लिए बोला जाता है मिशन कंट्रोल ने अपोलो के क्रू से ऑक्सीजन टैंक में लगे फैन को ऑन करके लिक्विड ऑक्सीजन को स्टेयर करने के लिए कहा दरअसल स्टेयर का मतलब होता है किसी लिक्विड को आपस में मिलाना दरअसल जब भी कोई स्पेस मिशन भेजा जाता है तो उसमें ऑक्सीजन और हाइड्रोजन इत्यादि गैस को लिक्विड फॉर्म यानी तरल रूप में कन्वर्ट करके भेजा जाता है ऑक्सीजन इत्यादि को लिक्विड फॉर्म में भेजने का फायदा यह होता है कि कम जगह में ज्यादा गैस को भरा जा सके अब अंतरिक्ष में टेंपरे इतना कम होता है कि यह लिक्विड ऑक्सीजन जमने लगती है तो इस वजह से ऑक्सीजन टैंक में एक फैन लगाया जाता है जिसकी सहायता से ऑक्सीजन की बनने वाली परतों को आपस में मिलाया जाता है ताकि ऑक्सीजन हमेशा एक समान अवस्था में बनी रहे और यह एक रूटीन प्रोसेस है जिसको कुछ घंटों के अंतराल पर हर बार करना पड़ता है मिशन कंट्रोल ने अपोलो 13 के क्रू से इसी रूटीन प्रोसेस को करने के लिए कहा जैसे ही जैक स्विगर ने ऑक्सीजन टैंक में मौजूद फैन को चालू करने के लिए क्रायो स्टियर के स्विच को दबाया वैसे ही ऑक्सीजन टैंक टू में शॉर्ट सर्किट की वजह से एक स्पार्क पैदा होता है और ऑक्सीजन टैंक टू ब्लास्ट हो जाता है यह ब्लास्ट इतनी जोर से होता है कि सर्विस मॉड्यूल का एक साइड से करीब 13 फीट का पैनल उखड़ कर बाहर निकल जाता है जैसे ही यह ब्लास्ट होता है वैसे ही अपोलो स्पेसक्राफ्ट के सभी अलार्म्स एक साथ बजने लगते हैं इधर ह्यूस्टन में बैठे मिशन कंट्रोल के कंप्यूटर्स पर अजीब तरह की रीडिंग्स दिखाई देने लगती हैं मिशन कंट्रोल को उन रीडिंग्स पर विश्वास नहीं हो रहा था तभी अपोलो का क्रू कंट्रोल से बोलता है सर्विस मॉड्यूल में तीन फ्यूल सेल्स लगे थे जिनकी मदद से अपोलो स्पेसक्राफ्ट में बिजली की सप्लाई की जा रही थी लेकिन इस धमाके की वजह से तीन में से दो फ्यूल सेल्स खत्म हो गए अब स्पेसक्राफ्ट को केवल एक ही फ्यूल सेल से पावर मिल रही थी जो कि स्पेसक्राफ्ट को चलाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं थी इसके बाद एस्ट्रोनॉट्स के सामने एक और नई प्रॉब्लम खड़ी हो गई दरअसल ब्लास्ट में एक ऑक्सीजन टैंक तो बिल्कुल ही खत्म हो चुका था लेकिन एस्ट्रोनॉट्स को दूसरे ऑक्सीजन टैंक की रीडिंग तेजी से नीचे गिरती हुई नजर आ रही थी एस्ट्रोनॉट्स को समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है लेकिन तभी चिम लवेल खिड़की की ओर देखते हैं तो उन्हें दिखाई देता है कि ऑक्सीजन टैंक वन से बड़ी ही तेजी से ऑक्सीजन अंतरिक्ष में रिस जा रही है परेशानी यह थी कि सर्विस मॉड्यूल में केवल दो ही ऑक्सीजन टैंक थे जिनमें से एक पूरी तरह से खत्म हो चुका था और दूसरा खत्म होने की कगार पर था यह ऑक्सीजन एस्ट्रोनॉट्स और पूरे कमांड मॉड्यूल को जिंदा रखने के लिए बहुत जरूरी थी एस्ट्रोनॉट्स को श्वास लेने के लिए भी ऑक्सीजन की जरूरत थी और बिजली और पानी को बनाने के लिए भी ऑक्सीजन की जरूरत थी अब ऐसे हालातों में चांद पर जाना तो बहुत दूर की बात मिशन कंट्रोल के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि इन एस्ट्रोनॉट्स को अब वापस धरती पर कैसे लाया जाए यह पृथ्वी से इतनी दूर थे कि अगर इनको पृथ्वी पर वापस लाया भी जाएगा तो इन्हें अभी भी करीब 4 दिन और लग जाएंगे क्या इतने दिनों तक एस्ट्रोनॉट्स बिना बिजली पानी और ऑक्सीजन के सरवाइव कर पाएंगे और अंतरिक्ष की जमा देने वाली ंडी का क्या इसको वह कैसे झेल पाएंगे क्योंकि पावर सप्लाई खत्म होने की वजह से अब स्पेसक्राफ्ट के हीटर भी बंद पड़े हैं और अंतरिच इतनी भयानक जगह है जहां पर इन्हें बचाने के लिए कोई रेस्क्यू मिशन भी नहीं भेजा जा सकता और ऐसे किसी रेस्क्यू मिशन को भेजा भी जाएगा तो उसकी तैयारियों में ही तीन से 4 महीनों का समय लग जाएगा अपोलो 13 को वापस लाने के लिए मिशन कंट्रोल ने एक प्लान बनाया हालांकि यह प्लान काम करेगा या नहीं यह कोई नहीं जानता लेकिन इसके अलावा मिशन कंट्रोल के पास कोई और रास्ता था भी नहीं अब चूंकि सर्विस मॉड्यूल के फेलियर से कमांड मॉड्यूल किसी काम का नहीं बचा था इस वजह से मिशन कंट्रोल ने अपोलो 13 के क्रू को लूर मॉड्यूल में बैठने के लिए कहा लेकिन यहां पर एक और परेशानी थी कि इस लूर मॉड्यूल को कुछ इस तरह से बनाया गया था कि इसमें केवल दो एस्ट्रोनॉट्स 20 घंटों तक ही बैठ सकते थे लेकिन अब इसमें ये तीन एस्ट्रोनॉट्स लगभग चार दिनों तक बैठेंगे और इसे एक लाइफ बोट की तरह इस्तेमाल करेंगे अपनी सप्लाईज और बिजली को बचाने के लिए इन एस्ट्रोनॉट्स को मिशन कंट्रोल की ओर से एक इंस्ट्रक्शन मिलता है कि स्पेसक्राफ्ट में मौजूद जितनी भी गैर जरूरी चीजें हैं उनको बंद कर दें ताकि पावर को धरती पर रीएंट्री के लिए बचाया जा सके पीने के लिए पानी लिमिटेड था तो एस्ट्रोनॉट्स को पूरे दिन में सिर्फ एक गिलास पानी पीने के ही इंस्ट्रक्शंस मिले थे हालांकि इन एस्ट्रोनॉट्स को सिर्फ दो से ढाई दिनों में धरती पर वापस लाया जा सकता है इसके लिए इनको अपोलो स्पेसक्राफ्ट को यूटर्न लेकर वापस धरती की ओर मोड़ना होगा लेकिन इसके लिए इन्हे सर्विस मॉड्यूल के मेन इंजन को चालू करना पड़ेगा लेकिन मिशन कंट्रोल इस बात से चिंतित था कि सर्विस मॉड्यूल में कितना डैमेज हुआ है यह कोई नहीं जानता इस वजह से कहीं ऐसा ना हो कि मेन इंजन को चालू करते ही पूरा स्पेसक्राफ्ट ही ब्लास्ट कर जाए इस परेशानी को ध्यान में रखते हुए सर्विस मॉड्यूल के मेन इंजन को चालू ना करने का ही फैसला लिया गया और अपोलो यान को धरती पर लाने के लिए एक दूसरे और लंबे रास्ते को चुना गया यह अपोलो यान चांद की धरती पर जाएगा और चांद के पीछे से उसकी परिक्रमा करते हुए चांद की ग्रेविटी की सा ता लेकर एक स्लिंग शॉट की तरह वापस धरती की ओर आएगा क्योंकि जब सर्विस मॉड्यूल में धमाका हुआ था तो उसकी वजह से अपोलो स्पेसक्राफ्ट अपने पाथ से थोड़ा भटक जाता है तो सबसे पहले तो अपोलो स्पेसक्राफ्ट को उस सही पाथ पर लाया जाए जिस पर चलकर वह चांद की परिक्रमा करके धरती की ओर आ सके तो मिशन कंट्रोल के पास सिर्फ एक ही रास्ता था क्यों ना लूनर मॉड्यूल के इंजन को चालू करके स्पेसक्राफ्ट के पाथ को फिक्स किया जाए हालांकि लूर मॉड्यूल के इंजन को इस काम के लिए बनाया ही नहीं गया था कि इसको को बार-बार चालू करके बंद किया जा सके लेकिन इसके अलावा कोई और ऑप्शन था ही नहीं पहली बार लूर मॉड्यूल के इंजन को चालू किया जाता है और अपोलो स्पेसक्राफ्ट तय किए रास्ते पर चांद के पीछे पहुंच जाता है और लूर मॉड्यूल के इंजन को बंद किया जाता है अब यह एस्ट्रोनॉट्स धरती से इतने दूर आ चुके थे कि यह एक नया रिकॉर्ड बन जाता है यह एस्ट्रोनॉट्स धरती से करीब 4 लाख किमी से भी ज्यादा दूर पहुंच चुके थे अभी तक अपोलो 13 मिशन में कोई भी रुचि नहीं ले रहा था लेकिन अब अपोलो 13 एक सनसनी खबर बन जाता है अपोलो स्पेसक्राफ्ट चांद की परिक्रमा करके जैसे ही पृथ्वी की ओर मुड़ता है वैसे ही लूर मॉड्यूल के इंजन को एक बार फिर से बर्न किया जाता है जिससे स्पेसक्राफ्ट चांद की ग्रेविटी से बाहर निकलता है और तेजी से पृथ्वी की ओर आने लगता है सौभाग्य से इस दूसरे बर्न को भी लूर मॉड्यूल झेल जाता है लेकिन परेशानी यहीं नहीं रुकने वाली थी क्योंकि लूर मॉड्यूल को केवल दो लोगों के लिए ही डिजाइन किया गया था लेकिन तीन लोगों के बैठने की वजह से केबिन के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने लगी जो कि एस्ट्रोनॉट्स की हर स्वास के साथ बढ़ती ही जा रही थी दरअसल पृथ्वी पर हमारे द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड गैस को पृथ्वी का एनवायरमेंट बैलेंस कर देता है लेकिन अपोलो स्पेसक्राफ्ट में इस कार्बन डाइऑक्साइड गैस को बैलेंस करने के लिए लिथियम हाइड्रोक्साइड के कनिस्ट करस का उपयोग किया गया था और एक सिंपल से केमिकल रिएक्शन के द्वारा co2 के लेवल को कंट्रोल में रखा जाता लेकिन लूर मॉड्यूल में लगा कनिस्ट सिर्फ दो लोगों के लिए ही बना था जो कि कुछ ही समय तक काम कर सकता था स्पेसक्राफ्ट में इस co2 के लेवल को को कम नहीं किया गया तो यह तीनों एस्ट्रोनॉट्स कुछ ही देर में अपना दम तोड़ देंगे लेकिन सौभाग्य से अच्छी खबर यह थी कि बंद पड़े कमांड मॉड्यूल में एक बड़ा कनिस्ट बॉक्स लगा था लेकिन परेशानी यह थी कि लूर मॉड्यूल में लगे कनिस्ट और कमांड मॉड्यूल में लगे कनिस्ट स्स को अलग-अलग कंपनियों ने बनाया था इस वजह से दोनों की ही डिजाइन अलग-अलग थी धरती से मिशन कंट्रोल ने एस्ट्रोनॉट्स को गाइड किया और स्पेसक्राफ्ट में मौजूद चीजों से जुगाड़ करके उन्होंने इस परेशानी को भी सॉल्व कर लिया और co2 का लेवल नीचे गिरने लगा ह्यूस्टन में मौजूद वैज्ञानिकों को लगा कि इन एस्ट्रोनॉट्स का नींद लेना बहुत जरूरी है ताकि इनका दिमाग सही तरह से काम करता रहे लेकिन अंतरिक्ष यान में ठंड इतनी थी कि इनको नींद कैसे आ जाए स्पेसक्राफ्ट की विंडोज पर भी बर्फ जमने लगी थी ठंड के मारे इन एस्ट्रोनॉट्स का बुरा हाल था जैसे-तैसे यह एस्ट्रोनॉट्स पृथ्वी के करीब आते हैं लेकिन अभी भी इनको एक और बड़ी चुनौती को पार करना होगा दरअसल पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय एक सही एंगल पर एंट्री करना बहुत जरूरी था अगर यह एंगल थोड़ा कम होगा तो स्पेसक्राफ्ट वायुमंडल से टकराकर बाउंस बैक करके सीधा अंतरिक्ष में चला जाएगा और फिर यह कभी धरती पर वापस नहीं लौट पाएगा यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे तालाब में एक खास एंगल पर पत्थर फेंकने पर वह पानी के ऊपर उछलने लगता है और अगर इस स्पेसक्राफ्ट का एंगल थोड़ा ज्यादा हुआ तो स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही ब्लास्ट कर जाएगा अभी अपोलो स्पेसक्राफ्ट का एंगल पृथ्वी पर रीएंट्री करने के लिए बिल्कुल भी सही नहीं था आमतौर पर रीएंट्री के दौरान कमांड मॉड्यूल के द्वारा ही इस एंगल को फिक्स किया जाता है लेकिन कमांड मॉड्यूल तो बंद पड़ा है और लूर मॉड्यूल में इस एंगल को सेट करने के लिए कोई भी कंप्यूटर प्रोग्राम नहीं डाला गया था इस वजह से इस एंगल को एस्ट्रोनॉट्स को मैनुअली सेट करना था मिशन कंट्रोल के द्वारा कुछ कैलकुलेशंस की गई और एस्ट्रोनॉट्स को गाइड किया गया कि कितने समय तक कौन से इंजन को चालू करना है दो एस्ट्रोनॉट्स ने कंट्रोल्स को संभाला और एक एस्ट्रोनॉट की नजर घड़ी पर थी और तीसरी बार लूर मॉड्यूल के इंजन को चालू किया जाता है सो भाग्य से इस तीसरे बर्न को भी लूर मॉड्यूल का इंजन झेल जाता है और एस्ट्रोनॉट्स ने रीएंट्री के एंगल को भी फिक्स कर लिया अब एस्ट्रोनॉट्स के लिए अग्नि परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी रीएंट्री के लिए उन्हें कमांड मॉड्यूल में वापस जाना जरूरी था क्योंकि केवल कमांड मॉड्यूल को ही रीएंट्री के लिए डिजाइन किया गया था इसके ऊपर हीट शील्ड लगी थी अच्छी बात यह थी कि रीएंट्री के लिए पावर बचाने के लिए कमांड मॉड्यूल को बहुत पहले ही बंद कर दिया था जिस वजह से रीएंट्री के लिए कमांड मॉड्यूल में रखी बैटरीज में पर्याप्त पावर थी एस्ट्रोनॉट्स कमांड मॉड्यूल में आते हैं और उसे चालू करते हैं और सर्विस मॉड्यूल को कमांड मॉड्यूल से अलग कर देते हैं जब सर्विस मॉड्यूल अलग हुआ तो एस्ट्रोनॉट्स ने देखा कि सर्विस मॉड्यूल में कितना बड़ा डैमेज हुआ था एस्ट्रोनॉट्स ने डैमेज हुए सर्विस मॉड्यूल की कुछ तस्वीरें भी ली अब समय आ गया था लूर मॉड्यूल को भी अलविदा कहने का जिसने अभी तक एस्ट्रोनॉट्स की जान बचाई आमतौर पर एस्ट्रोनॉट्स इस लूर मॉड्यूल को चांद के ऑर्बिट में छोड़कर ही आ जाते हैं लेकिन इस मिशन में इस लूर मॉड्यूल ने एक अलग रोल निभाया इस वजह से इसे पृथ्वी तक लाना पड़ा और कमांड मॉड्यूल से लूर मॉड्यूल भी अलग हो जाता है अब इस मिशन का आखिरी पड़ाव बचा था जो कि सबसे खतरनाक था इस कमांड मॉड्यूल को पैसिफिक ओशियन में लैंड करना है जहां पर यूएस नेवी के जहाज इन एस्ट्रोनॉट्स का इंतजार कर रहे हैं लेकिन ह्यूस्टन में बैठे वैज्ञानिकों को कुछ चिंताएं सता रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उस धमाके की वजह से कमांड मॉड्यूल की हीट शील्ड डैमेज हो गई हो अगर ऐसा होगा तो कमांड मॉड्यूल पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही ब्लास्ट कर जाएगा और दूसरी चिंता यह थी कि अंतरिक्ष की कड़कड़ाती ठंडी की वजह से कहीं कमांड मॉड्यूल के पैराशूट जम तो नहीं गए और क्या पैराशूट समय पर खुलकर कमांड मॉड्यूल की रफ्तार को कम कर पाएंगे या नहीं और वैज्ञानिकों की तीसरी चिंता यह थी कि जब यह एस्ट्रोनॉट्स पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेंगे तो दो से 3 मिनट के लिए उनसे संपर्क टूट जाएगा तो उन्हें पता कैसे चलेगा कि एस्ट्रोनॉट्स के साथ क्या हुआ फाइनली कमांड मॉड्यूल पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है और वायुमंडल असर दिखाने लगता है कमांड मॉड्यूल आग के एक गोले में तब्दील कम्युनिकेशन ब्लैकआउट होता है इन एस्ट्रोनॉट्स से मिशन कंट्रोल का संपर्क टूट जाता है उम्मीद की जा रही थी कि अगले 3 मिनट बाद एस्ट्रोनॉट से फिर से संपर्क किया जा सकेगा लेकिन 3 मिनट बाद एस्ट्रोनॉट्स की ओर से कोई जवाब नहीं आया कुछ सेकंड्स और गुजरते हैं फिर भी कोई जवाब नहीं आया ह्यूस्टन में मौजूद वैज्ञानिकों के साथ-साथ धरती पर मौजूद सभी लोगों की श्वास थमी हुई थी 10 सेकंड्स गुजरते हैं 30 सेकंड्स और गुजर जाते हैं और एक मिनट भी गुजर जाता है लेकिन कोई जवाब नहीं आता चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है आखिर इन एस्ट्रोनॉट्स के साथ क्या हुआ क्या हीट शील्ड सही सलामत थी क्या पैराशूट समय पर खुले होंगे 1 मिनट 20 सेकंड गुजर जाते हैं लेकिन जवाब नहीं आता फाइनली कम्युनिकेशन ब्लैकआउट के 4 मिनट 27 सेकंड बाद एस्ट्रोनॉट से संपर्क होता है यह तीनों एस्ट्रोनॉट्स सही सलामत धरती पर वापस आ चुके हैं चारों ओर खु ी की लहर दौड़ जाती है nas100 साल पहले अटलांटिक महासागर में एक ऐसी घटना घटी थी जिसमें 1500 से ज्यादा लोग देखते ही देखते समुद्र की गोद में समा गए कभी ना डूबने वाले जहाज टाइटनिक ने अपने पहले ही सफर पर ऐसा ग्रहण लगाया कि व घटना आज भी लोगों के दिल को दहला देती है टाइटनिक की कहानी को आप स्क्रीन पर दिख रही इस वीडियो में देख सकते हो मैं आपको वहीं मिलता हूं

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