मैं खुद अफगानिस्तान से बात करूंगा मैं बस सुबह बात करूंगा मैं बता रहा हूं कि मैं ब हैसियत सुबाह वफद भेज के मुलाकात करूंगा उनके साथ बैठ के बात करूंगा खैबर पख्तून ख के वजीर आला अली अमीन गंडापुर ने ऐलान किया है कि वह सूबे में अमन के लिए अफगान हुकूमत से बराह रास्त बात करेंगे ताकि कीमती इंसानी जानों के जया को रोका जा सके मगर जहां खजा उमू के माहरीन इस बात पर मुत्त फिक हैं कि सूबा अपने तौर पर यह काम नहीं कर सकता वहीं कुछ लोगों का यह मानना है कि इस इकम का मकसद इस्टैब्लिशमेंट पर दबाव बढ़ाना है हमने कभी नहीं देखा कि तहरीक इंसाफ का कोई वफद अफगानिस्तान गया हो या अफगानिस्तान का कोई वफद जो है वह खैबर पख्तून ख आया हो हाला के यह रिवायत रही है इस साइड प भी पख्तून बस्ते उस साइड प भी बस्ते है लेकिन यह एनपी की पॉलिसी थी और वह पर्सनल जो रिवायत एक आना जाना था वह होता था फिर सहाफ यों ने भी उनको ये जो तहरीक इंसाफ वाले थे इनको बताया था कि भाई कम से कम जाना हो लेकिन वह इन्होंने नहीं किया अब क्या जरूरत पड़ी कि जी जी यहां पर दहशतगर्दी हो रही है हमारे मसले मसाइल है और हम जो अफगानिस्तान से खुद बात करेंगे कतन इसकी वजह यह नहीं है कि यह दहशतगर्दी के लिए अली अमीन साहब जो है वो बात करेंगे यह दूसरा कार्ड है एस्टेब्लिशमेंट को पीछे धकेलने का कि जी अगर हम आप हमारे मुतालबा नहीं मान रहे हैं और कोई मुमकिन है डील नहीं कर रहे तो जी हम यह भी कर सकते हैं कि आप प मतलब जो हम प्रेशर डिवेलप करें बैनल अवामी और कौमी भी कि हम ऐसा भी कर सकते हैं पीटीआई का तो पहले से ही यह पॉलिसी उनकी रही है कि वो टीडीपी के साथ मुजरा चाते रहे बल्कि जमाने में तो न साहब ने कहा भी था कि उनको पवर में ऑफिस खोलने का मौका देना चाहिए तो उनकी पॉलिसी में तो कोई चेंज नहीं आया अली मन गपूर साहब ने भी जो बयान दिया मेरे ख्याल में वो उन्होने सवी से यह बयान दिया था कि बातचीत होनी चाहिए अफगानिस्तान के साथ और इसके अलावा कोई चारा नहीं है अब इस मौजू पर खिलाफ तो हो सकता है लेकिन यह कंटिन्यूएशन है उस पॉलिसी का जो कि खान साहब के जमाने में जनरल फैज अमीद की उसम मजाक रात हुए अफगानिस्तान के साथ और बहुत सारे मामलात है उसम जरे बहस भी आए अफगानिस्तान कीमत के साथ भी बातचीत हुई और टीडीपी की जो लीडरशिप थी अफगानिस्तान में काबल में उनके साथ भी मुजरा हुए जनल फज सा खैबर पख्तून खवा के वजीर आला ने अपने ऐलान को अमली जामा पहनाने के लिए अफगान कंसल जनरल से मुलाकात भी की है मगर सवाल यह है कि क्या अफगान हुकूमत एक सूबा हुकूमत से किसी भी किस्म की बातचीत को अहमियत देगी उन्होंने अफगान जो कंसल जनरल है मोहिब उल्ला साहब उनको बुलाया और उनके साथ बड़ी मीटिंग की और उसको बड़ा हाईलाइट किया गया और बड़ी वीडियो बनाई गई और उसको रिलीज भी किया गया और उसके साथ एक लंबी प्रीस रिलीज भी आई अब उस प्रीस लीज में जो है सारी बातें अली अमीन गंडापुर साहब की है कि जी हम तालुकात बेहतर बनाना चाहते हैं दहशतगर्दी जो है वो दोनों मु मालिक का मसला है इसी तरह जो हमारा बॉर्डर पे तिजारत का मसला है तो उसका भी हम हल चाहते हैं उसमें कहीं भी यह जिक्र नहीं था अफगान डिप्लोमेट की जानिब से कि जी हम ऐसा करेंगे या कोई वैसा करेंगे उसकी जानिब से एक लफ्ज भी नहीं था तो मैं इसको यह देखता हूं कि इसने अली अमीन साहब ने तो जिस तरीके से अफगानिस्तान को एज ए टूल के तौर पर इस वक्त इस्तेमाल किया जा रहा है वफा के खिलाफ तो वो तो उस हद उस हद तक कामयाब रहे लेकिन अफगानिस्तान के लिए एक मसला बन गया है कि आया वोह वाज करें कि जो अफगान डिप्लोमेट ने मुलाकात की है यह अफगानिस्तान की रजा पॉलिसी है या उन्होंने जाती हैसियत में मुलाकात की है और मुझे लगता है कि जाती हैसियत में मुलाकात की है ता हम इस मौके पर अफगान डिप्लोमेट को मुलाकात नहीं करनी चाहिए क्योंकि अब सूबे और वि फाक का एक बहुत संजीदा और अहम मसला चल रहा है और उसमें सूबा जो है अफगानिस्तान को एज ए टूल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है टीटीपी के जितने भी डिमांड्स है वो प्रोविंशियल गवर्नमेंट से कभी रहे नहीं है वो सारे डिमांड जो है वो फेडरल गवर्नमेंट के डोमेन में है वो फेडरल लेजिसलेटिव डोमेन में है सब्जेक्ट जो इश्यूज है वो फेडरल के डोमेन में है मिलिट्री एस्टेब्लिशमेंट के डोमेन में है तो वो अन तालिबान के साथ बातचीत करके क्या करेंगे के वो क्या ऑफर करेंगे या अगर वो ऑफर करें भी वो ज्यादा से ज्यादा यही करेंगे कि जी आपको हम मिटा देते हैं टीटीपी के साथ मुजा किरात करें तो हम टीटीपी को क्या ऑफर करेंगे या क्या ऑफर कर सकते हैं मजीद न्यूज अपडेट्स और डिजिटल स्टोरीज के लिए सब्सक्राइब करें डन न्यूज पाकिस्तान